Sunday, 5 June 2011

सिमरन की आँखों में आँसूं कहाँ आते है......



आँखें लाल ,भीगी पलकें ,आँखों से बारिश की बूंदों की तरह टप टप बरस रहे थे आँसूं ...लोंगों ने सोचा की न जाने की क्या कारन है जो हम इस तरह अपनी आँखों से कुछ बयां कर रहे है ...क्या सफाई दे ?क्या कारण दें ?क्यूंकि जो कारण हमारे रोने का था वो तो कोई महसूस ही नही नहीं कर सकता था ...

लोग कहते है जो लोग रोते है ,वो ये साबित करते है की वो कमज़ोर हैं ,वे नाज़ुक दिल वाले हैं और उनमे सहनशीलता नहीं है ,पर कोई हमसे पूछे तो हम बताये ,की जो ऐसा कहते है वो कितने गलत हैं ... 
हमारे अनुसार तो आंसुओं की कुछ और ही परिभाषा है ...ये जो आँसूं है सिर्फ आँखों से बहता पानी ही नहीं है ..बल्कि ये वो दर्द ,वो दुःख, ख़ुशी-ख्वाब ,इच्छा ,एहसास हैं जो एक मनुष्य के अन्दर समाया रहता है ..कभी कभी इनमे से जब किसी एक भाव का भार ज्यादा हो जाता है तब वो बहार निकलने के लिए आँखों को अपना रास्ता बना लेता है .....!
आंसुओं से ये साबित नही होता की वो व्यक्ति कमज़ोर है बल्कि ये बयां होता है की उस व्यक्ति के भीतर अपार शक्ति है की वो अपने अन्दर के तूफ़ान को कितने घंटों ,कितने दिन ,कितने महीनो शायद सालों से रोके हुए है ..कभी तो उसे बहार आना ही था नहीं आता तो इन्सान टूट जाता ....

जिनकी आँखों में आँसूं आते है वो दिल से बेहद गंभीर और गहरे होते हैं ...हर व्यक्ति किसी न किसी ऐसे कारण से रोता है जिसकी वजह से उसकी रातों की नींद ,उसका चैन या मानसिक शांति छिन गयी होती है न की उसको रोने का शौक है ....इसलिए हमारी हर एक इन्सान से गुज़ारिश है की अगर कोई रोता है ..तो उसे चुप करने के लिए कुछ ऐसा न किया जाये और न ही कहा जाये जो की उसे और दुःख पहुंचाए ...

हमारे अनुसार एक मनुष्य को जी भर कर रो लेने दिया जाये ताकि भविष्य में उसके मनन में शांति बनी रहे ..वह किसी बोझ टेल दबा हुआ न महसूस करे ............................ये आँसूं बहोत कीमती हैं और जब ये निकलते है तो ये हमेशा एक वडा कर के जाते है की जिस वजह से युए बाहर आये उस वजह को ही मिटा देंगे ..ये व्यक्ति को इतना मज़बूत बना देते हैं की अगली बार जब जब वही कारण उसे परेशान करता है तब व्यक्ति उस कारण को इतनी शक्ति और हौसले से बर्दाश्त करता है की वो कारण ही दूर हो जाता है ....आँसूं तो वो बयां करते है जो शायद व्यक्ति अपने मुंह से कभी नही कह पता .....

काश हमारे पास भी कोई ऐसा हो जो इनकी भाषा समझ ले .....पर कोई बात नहीं ...हम खुद इनकी भाषा समझेंगे क्यूंकि जब हम अकेले होते हैं तब यही तो हमारा साथ निभाते है ...आँसूं हमारे सच्चे मित्र होते हैं ...आसुओं से हम अपने ह्रदय को सींचते है ताकि हमारे मन की हरियाली पनपे ...हमे सब कुछ अच्छा लगने लगे .......................

इसलिए आंसुओं को कभी भी गलत नहीं लेना चाहिए और जब कोई रो रहा हो तब ये समझना चाहिए की रोने वाला व्यक्ति अपने सबसे करीबी दोस्त से बात कर रहा है ...........................................!

'वो अश्क जो हमारी आँखों से ढल गया होगा 
किसी हार का मोती पिघल गया होगा 
सिमरन की आँखों में आँसूं कहाँ' आते है
कहीं घटाओं में सूरज पिघल गया होगा ''

 

Monday, 30 May 2011

''हे माधवी देवी(पृथ्वी) मुझे विवर (आश्रय) दे मैं यदि सत्यनिष्ठ हूँ तो माधवी देवी मुझे विवर दें ..........



मैंने कुछ दिनों तक रामायण सीरियल देखा था !मैं अगर कुछ देखती हूँ तो उसे शुरू से अंत तक देखे बिना मुझे चैन नहीं आता ..रामायण की विभिन्न घटनाओं में सीता कहती है ''हे नारायण ,तुम्हे छोड़ कर मुझे स्वर्ग की भी कामना नहीं है (2/27/21) राम तुम्हारे विरह में मुझे प्राण त्यागने होंगे (2/28/5) आपके परित्याग करने से मेरी मृत्यु अच्छी(2/30/20) ....क्या ये सिर्फ प्रेम है ?प्रेम में अंधी बनी सीता का स्वर्ग त्याग ?प्रेम के अथाह जल में डूब कर यदि कोई मृत्यु की बात कहे तो बुरा नहीं लगता ..लेकिन सीता के ऊपर पतिव्रता धर्म का आरोप लगाकर ब्रह्मण जब कहता है --पति ही परम देवता (2/19/16) ''इस जन्म और परलोक में हमेशा पति ही नारी की एक मात्र गति है ''(2/27/6) वो विमान में, आकाश में जहाँ भी हो ,पति की पदछाया में ही विशिष्ट स्थान पाती है (2/27/9) ...तब अवश्य ही उसे और कुछ भी कहा जाये ,प्रेम कहने में खटकता है ,,

सीता कौशल्या से कहती है --तंत्रिहीन वीणा नहीं बजती ,चक्रहीन रथ नहीं होता ..पति हीना नारी सौ पुत्रों की जननी होकर भी सुख नहीं पाती (2/39/29) सीता ,राम से भी कहती है --नारी की एक गति है पति ,दूसरा पुत्र,तीसरा रिश्तेदार और चौथी उसकी कोई गति नहीं है (2/61/24)

स्त्री के लिए पति नामक बस्तु बहुत मूल्यवान है ..अर्थात पुरुष नामक वस्तु बहुत मूल्यवान है ..पुरुष यदि वृक्ष है तो नारी उसके साथ लिपटी परजीवी लता ..वृक्ष के सहारे के बिना जिस प्रकार लता नहीं बच पति उसी प्रकार पुरुष के आश्रय के बिना नारी का जीना असंभव है ..

लम्बे समय तक स्त्री विरह झेलने के बाद राम ने सीता से कहा ---मैंने युद्ध करके जो जयलाभ किया है, वह तुम्हारे लिए नहीं है (6/115/15) ,अपने प्रसिद्ध वंश के कलक को मिटाने के लिए (6/115/16) राम ने और भी कहा ---जाओ वैदेही ,तुम मुक्त हो ..जो करना था वो मैंने किया ...मुझे पति रूप में पाकर तुम जराग्रस्त न होओ ,इसलिए मैंने राक्षस की हत्या की ..मेरे जैसा धर्म्बुध्ही संपन्न व्यक्ति दुसरे के हाथ में गयी हुई नारी को एक पल के लिए भी कैसे ग्रहण कर पायेगा ?तुम सचर्रित्र हो या दुश्चरित्र तुम्हे आज मैं भोग नहीं कर सकता मैथिलि ! तुम उस घी की तरह हो ,जिसे कुत्ते ने चाट लिया है (रामायण 3/275/10-13) 

राम ने इस तरह बड़ी ही आसानी से सीता को सारे बन्धनों से मुक्त कर दिया ....सीता से राम प्रेम करते है ,इसलिए उन्होंने रावण की हत्या नहीं की बल्कि इसलिए की, कि राम कि पत्नी होकर सीता यदि रावण के प्रसाद में जराग्रस्त हो गयी तो राम के शौर्य कि छति होगी ...राम स्वयं के शौर्य की हानि नहीं चाहते इसलिए उन्होंने रावण कि हत्या की ..राम सूक्ष्म धर्म बुद्धि संपन्न व्यक्ति है ,परपुरुष द्वारा स्पर्श की हुई नारी को वह कैसे धारण करेंगे ?इसीलिए सीता सचरित्र है या दुश्चरित्र ,राम के लिए सीता का भोग कर पाना संभव नहीं है ..कुत्ते द्वारा चाटे गए घी का प्रयोग जिस प्रकार यज्ञ में नहीं होता ,उसी प्रकार परपुरुष द्वारा स्पर्श की गयी नारी अपने पति के भोग में नहीं लगती ...

मुझे तो यही लगता है की स्वयं राम ने सीता के प्रति सबसे ज्यादा अन्याय किया है ...इतना तो पाखंडी रावण  ने भी नहीं किया ..राम ने ये कभी नहीं जानना चाह की रावण ने सीता के साथ क्या किया ,सिर्फ शक की बुनियाद पर राम ने सीता पर दोषारोपण कर दिया था ,केवल नारी के ''सतीत्व'' को लेकर जितना भी शोरगुल हो ,परन्तु सती शब्द का कोई पुल्लिंग विलोम शब्द नहीं है ..इसलिए दीर्घकाल के वियोग के समय राम ने क्या किया था ,किसे छुआ था या किसी ने उन्हें छुआ था या नहीं ,आदि सवाल करने का दुस्साहस किसी में नहीं था 

अपने सतीत्व या पवित्रता का प्रमाण देने के लिए सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी ..प्रजा का संदेह दूर करने के लिए वाल्मीकि ने सीता से दुबारा अग्निपरीक्षा देने की बात कही ..जीवित रहने पर सीता को जीवन भर अग्निपरीक्षा देनी पड़ी ..उसे मुक्ति नहीं थी ..एक असहाय नारी का किसी पुरुष ने स्पर्श किया ,इस माफ़ न करने योग्य अपराध से उसे मुक्ति नहीं मिली ...
सीताजी ने पृथ्वी से आश्रय माँगा ..किसी पुरुष ने उन्हें आश्रय नहीं दिया ..योग्य सम्मान नहीं दिया ..इसी लिए किसी पुरुष या पुरुष शासित समाज से सीता ने आश्रय नहीं माँगा ..अपने व्यक्तित्व की रक्षा के लिए उन्होंने चरम सत्य के बीच शपथ लेकर अपने आपको बचाया है ..सारे असत्य ,अन्याय से ,असम्मान से ,यह तो एक तरह का पलायन ही है 

पति नारी की एकमात्र गति है ..उसके पास पत्नी पर संदेह करने का और सज़ा देने का अगाध अधिकार है ..सभी पुरुषों को नारी के चरित्र पर संदेह करने का अधिकार है ,और उस संदेह के बल पर निरपराध नारी को सज़ा देने का भी अधिकार है ..रामायण में नारी को ''मनुष्य'' की मर्यादा नहीं दी गयी बल्कि यह सीख दी गयी की समाज पुरुष के एकनिष्ठ होने का दावा नहीं करता और नारी को एकनिष्ठता ,सतीत्व या पतिव्रता का प्रमाण देकर भी समाज में सम्मान नहीं मिलता ..उसे अग्नि परीक्षा देकर बार बार ये साबित करना पड़ता है की उसके सतीत्व का नाश नहीं हुआ ...

चूँकि ''सतीत्व'' शब्द सिर्फ नारी के लिए है ,पुरुष के लिए नहीं इसलिए पुरुष को अग्निपरीक्षा के झमेले में नहीं पड़ना पड़ता ,स्त्री को अकेले ही सतीत्व का पालन करना पड़ता है ,पवित्र रहना पड़ता है ..इतना ही नहीं पति के भोग के लिए स्वयं को तैयार करना पड़ता है 

सीता का सतीत्व देखकर लोग मुग्ध रह गए ..सीता के अग्नि प्रवेश से लोग तृप्त हुए ..सीता के सत्कर्म से लोग आनंदित हुए ..नारी का चरम अपमान ,निर्लज्ज दलन असख्य बार रामायण --महाभारत में उच्चारित हुआ है ..और इसी रामायण---महाभारत को देखने के लिए लोग टूट पड़ते है ...अगर इस पृथ्वी पर सभ्यता कहे जाने लायक कुछ है तो उसे लज्जित होकर सीता की तरह कहना चाहिए ---''हे माधवी देवी(पृथ्वी) मुझे विवर (आश्रय) दे मैं यदि सत्यनिष्ठ हूँ तो माधवी देवी मुझे विवर दें .......... 



Thursday, 5 May 2011

चरित्र



मैं पुरुष पाठकों से कह रही हूँ ,मान लीजिये आपको लग रहा है की एक लड़की ने आपके साथ अन्यायपूर्ण आचरण किया है या फिर किया नहीं है पर देख सुन कर आपको लगता है की लड़की बहुत अहंकारी है ,अहंकार से उसके पैर धरती पर नहीं टिकते ,अकड़कर चलती है ,किसी की तरफ मुड़कर नहीं देखती ,किसी को नहीं पूछती....ऐसी स्थिति में यदि आप बदला लेना चाहते हैं तो आपके पास एक अच्छा उपाय है ...वो लड़की आपको पूछती नहीं है ,न पूछे -इससे आपको कोई असुविधा नहीं होगी....इस बात को लेकर आप बिलकुल परेशान मत होईयेगा..आप तो पुरुष हो..पौरुष से आपका खून खौल रहा है ...आपके हाथ में एक ऐसा भयानक शस्त्र है,जिसका प्रयोग करके आप उस लड़की का पूरा अहंकार या सरलता कुछ भी कह लीजिये,एकदम मिटटी में मिला सकते है ....इतना ही नहीं जनाब यदि उसका माथा ऊँचा है तो उसे नतमस्तक करने की क़ाबलियत है आपके पास....

किसी प्रकार की कटारी  या छुरे की आवश्यकता नहीं...उन सबके झमेले में मत जाईयेगा...क्यूंकि इससे काट डालने पर मुकद्दमा शुरू होगा..खामखा जेब से कुछ पैसा निकल जायेगा...पिस्तोल से भी नही क्यूंकि क्यूंकि उसमे भी खतरा कम नहीं है गोली की आवाज़ सुन कर सैकड़ों लोग जमा हो जायेंगें..सुन रही हूँ आजकल एसिड से भी बहोत अच्छा नतीजा नहीं निकलता आँखें ठीक से अंधी नही होती,गाल ठीक से जलते नहीं ऊपर से अगर निशाना ठीक न हुआ तो कोई फायदा भी नहीं ......

अवश्य ही आपको ये जानने की बहुत इच्छा हो रही होगी की ये ज़बरदस्त अस्त्र है क्या ?क्या है वो अस्त्र --जो आधुनिक कोई आयुध नही---जो हमेशा प्रयोग होता आया है...फांसी का फंदा भी नहीं है,मजबूत कलाई वाला हाथ भी नहीं जो मौका मिलते ही गला दबा देगा..तो क्या कोई गला काटने वाला कोई ब्लेड है या जूता जिसे अवसर पाते ही फेंककर मारा जा सकता है ? नहीं वैसा कुछ भी नही है...

मैं अच्छी तरह जानती हूँ की जो पुरुष पाठक इसे ओअध रहे होंगे,शत प्रतिसह्त ये जाना चाह रहे होंगे की बंद मुट्ठी में जो अस्त्र है वो आखिर है क्या ..दरअसल बंद मुट्ठी कहना ठीक नहीं होगा क्यूंकि ,अस्त्र तो आपकी जीभ पर है ...ज्यादा नहीं आपको सिर्फ एक वाकया का उच्चारण करना होगा ..केवल किसी एक व्यक्ति क सामने आप एक वाक्य बोलेंगे..यही वाक्य आपका अस्त्र है जिसके द्वारा आप  अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होंगे ..जो वाक्य घटना में चरम सफलता लायेगा, वो है,''इस लड़की का चरित्र ठीक नहीं है 'बस किला फ़तेह !इसके बाद आप बदन में हवा लगते हुए घूमिये या दरवाज़ा बंद कर के चुप चाप सो जाईये ,फिर आपकी ज़रूरत नहीं होगी ..ये अकेला वाक्य ही बाज़ी  मार ले जायेगा ...एक अड्डे से दूसरा अड्डा ,एक शहर से दूसरा शहर ...चरित्र अगर नारी चरित्र हुआ तो उस जैसा कमज़ोर शीशा आपको और कहीं नहीं मिलेगा वो तो इतना कमज़ोर होता है की उसकी तरफ मुंह करके फूंकने पर वो चूर चूर हो जाता है ....आपको चिंतित होने की कोई बात नहीं ..इसके लिए किसी चश्मदीद गवाह की ज़रूरत भी नहीं होगी ..कोई जेल या जुर्माना भी नहीं है

पुरुष पाठकों !मान लीजिये ,आपने इस हथियार का प्रयोग किया परिणाम स्वरुप उस लड़की को किस किस तरह की समस्याओं को झेलना पड़ रहा है ये आप उसी समय जान सकते है ,अगर आप नए सिरे से लड़की होकर जन्म लें ..वरना मैं आपको ये समझाने में असमर्थ हूँ की लड़की अब इन-इन सामाजिक अवस्था में है ....इसका मतलब ये नहीं है की आप बात को बिलकुल नहीं समझ पाएंगे ---एक उपाय है...आप यदि किसी परिवार में सामाजिक रूप से रह रहें है और आपकी कोई बहन उस परिवार में बड़ी हो रही है तो उसके नाम पर ऐसी बात आप खुद बोल कर बड़े ही चमत्कारिक ढंग से इसका आनंद ले सकते है ..ये वाक्य कहाँ और कितनी दूर जाता है तथा क्या क्या गुल खिलाता है ..ये जानने के लिए इस वाक्य के पीछे आप पूंछ की तरह लगे रहिये और ध्यान रखिये...अवश्य ही आप निशचिंत होंगे की जिस अस्त्र की बात आपको सुनाई.... सुने वो बुरा नहीं है..

''चरित्र '' एक बेहद मूल्यवान वस्तु है ..पुरुष के लिए उसे सम्हाले रखने की कोई ज़रूरत भले ही न हो ..नारी के लिए होती है ,,,नारी यदि उसे संदूक में बंद करके रखती है तो संरक्षित सामग्री ऊंचे दामों में बिकती है और उसे लेकर व्यवसाय कर रहें है हमारे समाज के धुरंदर सौदागर ....

फिलहाल पुरुष पाठकों से बातचीत ख़त्म करती हूँ ...अब स्त्री पाठक से कहती हूँ .....पुरुषों को जो तौर तरीका मैंने बताया ..दरअसल मुझसे  वो ज्यादा अच्छी तरह इसे समझते है ...फिर भी इसलिए बताया ताकि वो जान लें की उनकी चल को हम लड़कियां अब अच्छी तरह समझ चुकीं हैं ..जो रहस्य खुल जाता है ..उसका तीखापन अपने आप कम हो जाता है .......

अंत में महिला पाठकों के उद्देश्य से ''चरित्र'' नाम की कविता निवेदित करती हूँ


''तुम लड़की हो,
तुम बहुत अच्छी तरह याद रखना
जब तुम घर से की दहलीज़ पार करोगी
लोग तुम्हे तिरछी नज़रों से देखेंगे ...
तुम जब गली से होकर चलती रहोगी
लोग तुम्हारा पीछा करेंगे,सीटी बजायेंगे....
जब तुम गली पार कर मुख्य सड़क पर पहुँचोगी,
लोग तुम्हे चरित्र हीन कह कर गाली देंगे
अगर तुम निर्जीव हो
तो तुम पीछे लौटोगी
वरना
वरना जैसे जा रही होगी
चलती जाओगी .............''





Sunday, 1 May 2011

किसी किसी के लिए




पता नहीं क्यूँ तो अचानक ही बेवजह ही '
किसी  किसी के लिए जागता है बिलकुल अलग सा एहसास
कोई वजह नहीं फिर ,क्यूँ होती है हर वक़्त एक बेचैनी
किसी को देखने पाने की चाहत जागती है
किसी के बेहद करीब बैठने को जी करता है
वैसे इसकी कोई खास वजह नहीं होती
तब क्यूँ चाह जगती है
असल में चाहत पर कोई लगाम नहीं होती
ये चाहत,एक सुबह से दूसरी सुबह तक तंग करती है हर रोज़
ये चाहत कभी पूरी नहीं होती,फिर क्यूँ पड़ी रहती है....बेशर्म की तरह
आसरा लगाये रहती है....
तकलीफ होती रहती है,हालाकिं तकलीफ की कोई वजह नहीं होती,तब भी
इसके बावजूद टीसती रहती है
इसी तरह वक़्त बर्बाद होता रहता है

पता नहीं क्यूँ वक़्त के इस दौर में पहुँच कर
किसी किसी के प्रति
ऐसा क्यूँ महसूस करती हूँ
क्यूँ छुपाये रखनी पड़ती है अपनी इच्छाएं

वैसे जिसके प्रति जागता है,ये अलग सा एहसास
वो शख्श ये चाहत देखकर ,कहीं हंस न पड़े
इसी भय में छुपाये रहती हूँ चाहत,आड़ में समेटे रखती हूँ तकलीफें !
यूँ चलती फिरती हूँ मानो मुझे कुछ नहीं हुआ !
मानो सबकी तरह मैं भी सुखी इन्सान हूँ
बस मैं चलती रहती हूँ
यूँ जाने को कितनी जगह होती है
लेकिन जाती नहीं,सिर्फ उसके पास
जिसके लिए बसा है एक अलग सा एहसास!

किसी किसी के लिए यूँ अजीब तरह से
क्यूँ लगता है
यूँ ज़िन्दगी में बाकि पड़े है कितने काम !
इसके बावजूद सबकुछ परे हटाकर ,सिर्फ उसे ही सोचती हूँ
अगर वो ना मिला,तो ये दुःख मुझे तोड़ देगा

ये जानते हुए भी उसे याद करती हूँ
उसे याद करके कोई फायदा नहीं है
इस एहसास के बावजूद भी
उसे ही सोचती हूँ
वो मुझे कभी नहीं मिलेगा,ये जानते हुए
सिर्फ उसे ही पाना चाहती हूँ...............

Tuesday, 26 April 2011

Mujhe prem karne ki chah.....


Wo mujhe prem karna chahta tha jis tarah kisi ne nahi chaha ,mere pita meri maa or meri charon taraf ke tamam log jis tarah mujhe na chah sake.usne chaha tha mujhe us tarah se chahna .Chan sitaron ki roshni me mere chehre ko bahot kareeb se dekhna.

Mujhe chahne ki ichha thi usme ,khud me jazb kar lene ki gehri kamna bhi........par in sabse upar thi mere hontho  ki hansi sada phoolon me dube dekhne ki kwahish,sabse pare tha ,bahe ja rahe samay me ittefakan mile mere sath ko bade hi pyar se sanjo k rakhne ka yatn......Der tak mere hanthon ko apne hanthon me sahej ke rakhne ki bholi ichha...

Wo chahta tha ,mera bachpan mere sath dubara jeena , mere atit ki galiyon ,mohallon,shehron me jana , jis nadi ke kinare main tehri hun kuch pal ko hi sahi, apni hatheliyon me wahan se us nadi ko utha lana,jo phool sabse priye rahe mujhe unki pankhuriyon ko hath me lekar der tak sehlana ,jo geet maine gaye kabhi unka ek ek shabd puri dharti par gunja dena..

Bahot bholi thi uski ichhayen ,un ichhayon me main sirf nari nahi rahi...na hi koi priye vyakti .....to phir sirf priya kaise hoti...
usne is tarah dharan kiya mujhko khud me , jaise darakht sharad ki hawao,van ke rehasyon or ritu ke phoolon ko karta hai......main sirf swapn nahi thi uske liye, na hi sundar vastuon ki upma...usne socha tha ki uske jeewan ka bahot gehra arth hai mujhme...............

PAR KYA USKA JEEWAN THA MUJHME......!

Yahin se wo prashn shuru hua jiske phande me aa ke har shabd ulajh kar reh gaya hai...meri bholi ichhaon par use chahne or khud ko chah pane k yogya banane ki koshish par gehri choten pad rahi hai........kya wo kabhi janega ki apne dil ki aanch me uske liye kya mehsus kiya tha maine?
kya yakeen karega ki uske liye kitni anmol sougate thi mere paas .....kuch bahot akeli raaten thi or dil bheetar se uthi ek sachhi TADAP

Ye sab uske liye ,or aaj ye sab bilakh utha hai,ye jungle ye parvat ,lehren ,ye phool, nadi ,shaam ,khandhar.
wo hota to inhe ek arth milta Inke ekant yun bhi hota ...........jaise aakash gangaon me taro ki hansi gunjati hai..........

Inhe sirf pyar nahi ek sambandh chahiye tha,
ek sambodhan chahiye tha
ek sparsh chahiye tha , ek hansi chahiye thi

Afsos ! Aisa kuch nahi hua or in sab me gehre utarte gaye gaye hain Dukh k mousam or Udasi ke bol....
mere isi nagar me main in sab ke sath thake kadmo se guzarti hun...Bahot door un raston ,un imaraton se or un darakhton se....jo usse AASHNA the.....par DARD hai ki badhta hi jata hai.....
ki.........

KABHI KABHI LAGTA HAI KOI RANJ-O-GUM NHI
FAKAT UDASIYAN HAI SHAM KI.............................................!

Thursday, 21 April 2011

MUST WE KNOW ,WHO WE ARE


Well,you have to know what you are.That's what I think ,[I'm]a hindu a women .I think they come one after the other.I'm a women only in the third place.I think its that way ,but it doesn't have to be so,because u can be everything .Both a mother and a wife,but you must say what you are.And you have to be something that I'm not,and I have to be something .Indeed a HINDU

Monday, 18 April 2011

In the name of honour

In the 21st Century we talk a lot about the broader perspective for India as it’s going to emerge as a super power in 2020, also with his firm stand on the basic grounds of ethics and culture values and Preservation of the same. But besides all this still the growing incidents of honour killing in different states, and now in the national capital, have proven that caste and its brutal ramifications are still prevalent in India. Many of us are unaware by the incidents.
But ever thought about those lives that had to suffer and go through these brutal rituals of our so called ‘Society’ who claim to decide the right and wrong for an individual.
Is it justified that a Father or the Relatives should kill their own siblings in the name of Honour and prestige in the society if a girl or a boy wants to marry with her own choice irrespective of caste, religion?
Honor killing can be defined as:
Honor crimes are acts of violence, usually murder, committed by male family members against female family members, who are held to have brought dishonour upon the family. A woman can be targeted by (individuals within) her family for a variety of reasons, including: refusing to enter into an arranged marriage, being the victim of a sexual assault, seeking a divorce — even from an abusive husband — or (allegedly) committing adultery. The mere perception that a woman has behaved in a way that “dishonours” her family is sufficient to trigger an attack on her life.
The apparent "shame" could be caused by a victim refusing to enter into an arranged marriage or for having a relationship that the family considers to be inappropriate. Some victims are driven to suicide from the pressure of their families.
Honor killing is different from the dowry deaths that are also a very common practice in India as, in the case of dowry deaths, the perpetrators of that action claim that they have not been given enough material rewards for accepting the woman into the family. In that case there is a lot of harassment from the in-laws and more times than one, it has been noted that the wife commits suicide rather than being killed by the in-laws, though it has to be said that she has been mentally killed, if not physically. We have had a tradition of honor killing.
There are various reasons why people or family members decide to kill the daughter in the name of preserving their family honor. The most obvious reason for this practice to continue in India, albeit, at a much faster and almost daily basis, is because of the fact that the caste system continues to be at its rigid best and also because people from the rural areas refuse to change their attitude to marriage. According to them, if any daughter dares to disobey her parents on the issue of marriage and decides to marry a man of her wishes but from another gotra or outside her caste, it would bring disrepute to the family honor and hence they decide to give the ultimate sentence, that is death, to the daughter. Now as has become the norm, the son-in-law is killed as well. Sociologists believe that the reason why honor killings continue to take place is because of the continued rigidity of the caste system. Hence the fear of losing their caste status through which they gain many benefits makes them commit this heinous crime. The other reason why honor killings are taking place is because the mentality of people has not changed and they just cannot accept that marriages can take place in the same gotra or outside one’s caste. The root of the cause for the increase in the number of honor killings is because the formal governance has not been able to reach the rural areas and as a result. Thus, this practice continues though it should have been removed by now.
There are various misconceptions regarding the practice of honor killing. The first misconception about honor killing is that this is a practice that is limited to the rural areas. The truth is that it is spread over such a large geographical area that we cannot isolate honor killings to rural areas only, though one has to admit that majority of the killings take place in the rural areas. But it has also been seen recently that even the metropolitan cities like Delhi and Tamil Nadu are not safe from this crime because 5 honor killings were reported from Delhi and in Tamil Nadu; a daughter and son in law were killed due to marriage into the same gotra. So it can be seen clearly that honor killing is not isolated to rural areas but also to urban areas and as already pointed out, it has a very wide geographical spread. The second misconception regarding honor killing is that it has religious roots. Even if a woman commits adultery, there have to be four male witnesses with good behavior and reputation to validate the charge. Furthermore only the State can carry out judicial punishments, but never an individual vigilante. So, we can clearly see that there is no religious backing or religious roots for this heinous crime.

By Simran Gupta