Monday 30 May 2011

''हे माधवी देवी(पृथ्वी) मुझे विवर (आश्रय) दे मैं यदि सत्यनिष्ठ हूँ तो माधवी देवी मुझे विवर दें ..........



मैंने कुछ दिनों तक रामायण सीरियल देखा था !मैं अगर कुछ देखती हूँ तो उसे शुरू से अंत तक देखे बिना मुझे चैन नहीं आता ..रामायण की विभिन्न घटनाओं में सीता कहती है ''हे नारायण ,तुम्हे छोड़ कर मुझे स्वर्ग की भी कामना नहीं है (2/27/21) राम तुम्हारे विरह में मुझे प्राण त्यागने होंगे (2/28/5) आपके परित्याग करने से मेरी मृत्यु अच्छी(2/30/20) ....क्या ये सिर्फ प्रेम है ?प्रेम में अंधी बनी सीता का स्वर्ग त्याग ?प्रेम के अथाह जल में डूब कर यदि कोई मृत्यु की बात कहे तो बुरा नहीं लगता ..लेकिन सीता के ऊपर पतिव्रता धर्म का आरोप लगाकर ब्रह्मण जब कहता है --पति ही परम देवता (2/19/16) ''इस जन्म और परलोक में हमेशा पति ही नारी की एक मात्र गति है ''(2/27/6) वो विमान में, आकाश में जहाँ भी हो ,पति की पदछाया में ही विशिष्ट स्थान पाती है (2/27/9) ...तब अवश्य ही उसे और कुछ भी कहा जाये ,प्रेम कहने में खटकता है ,,

सीता कौशल्या से कहती है --तंत्रिहीन वीणा नहीं बजती ,चक्रहीन रथ नहीं होता ..पति हीना नारी सौ पुत्रों की जननी होकर भी सुख नहीं पाती (2/39/29) सीता ,राम से भी कहती है --नारी की एक गति है पति ,दूसरा पुत्र,तीसरा रिश्तेदार और चौथी उसकी कोई गति नहीं है (2/61/24)

स्त्री के लिए पति नामक बस्तु बहुत मूल्यवान है ..अर्थात पुरुष नामक वस्तु बहुत मूल्यवान है ..पुरुष यदि वृक्ष है तो नारी उसके साथ लिपटी परजीवी लता ..वृक्ष के सहारे के बिना जिस प्रकार लता नहीं बच पति उसी प्रकार पुरुष के आश्रय के बिना नारी का जीना असंभव है ..

लम्बे समय तक स्त्री विरह झेलने के बाद राम ने सीता से कहा ---मैंने युद्ध करके जो जयलाभ किया है, वह तुम्हारे लिए नहीं है (6/115/15) ,अपने प्रसिद्ध वंश के कलक को मिटाने के लिए (6/115/16) राम ने और भी कहा ---जाओ वैदेही ,तुम मुक्त हो ..जो करना था वो मैंने किया ...मुझे पति रूप में पाकर तुम जराग्रस्त न होओ ,इसलिए मैंने राक्षस की हत्या की ..मेरे जैसा धर्म्बुध्ही संपन्न व्यक्ति दुसरे के हाथ में गयी हुई नारी को एक पल के लिए भी कैसे ग्रहण कर पायेगा ?तुम सचर्रित्र हो या दुश्चरित्र तुम्हे आज मैं भोग नहीं कर सकता मैथिलि ! तुम उस घी की तरह हो ,जिसे कुत्ते ने चाट लिया है (रामायण 3/275/10-13) 

राम ने इस तरह बड़ी ही आसानी से सीता को सारे बन्धनों से मुक्त कर दिया ....सीता से राम प्रेम करते है ,इसलिए उन्होंने रावण की हत्या नहीं की बल्कि इसलिए की, कि राम कि पत्नी होकर सीता यदि रावण के प्रसाद में जराग्रस्त हो गयी तो राम के शौर्य कि छति होगी ...राम स्वयं के शौर्य की हानि नहीं चाहते इसलिए उन्होंने रावण कि हत्या की ..राम सूक्ष्म धर्म बुद्धि संपन्न व्यक्ति है ,परपुरुष द्वारा स्पर्श की हुई नारी को वह कैसे धारण करेंगे ?इसीलिए सीता सचरित्र है या दुश्चरित्र ,राम के लिए सीता का भोग कर पाना संभव नहीं है ..कुत्ते द्वारा चाटे गए घी का प्रयोग जिस प्रकार यज्ञ में नहीं होता ,उसी प्रकार परपुरुष द्वारा स्पर्श की गयी नारी अपने पति के भोग में नहीं लगती ...

मुझे तो यही लगता है की स्वयं राम ने सीता के प्रति सबसे ज्यादा अन्याय किया है ...इतना तो पाखंडी रावण  ने भी नहीं किया ..राम ने ये कभी नहीं जानना चाह की रावण ने सीता के साथ क्या किया ,सिर्फ शक की बुनियाद पर राम ने सीता पर दोषारोपण कर दिया था ,केवल नारी के ''सतीत्व'' को लेकर जितना भी शोरगुल हो ,परन्तु सती शब्द का कोई पुल्लिंग विलोम शब्द नहीं है ..इसलिए दीर्घकाल के वियोग के समय राम ने क्या किया था ,किसे छुआ था या किसी ने उन्हें छुआ था या नहीं ,आदि सवाल करने का दुस्साहस किसी में नहीं था 

अपने सतीत्व या पवित्रता का प्रमाण देने के लिए सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी ..प्रजा का संदेह दूर करने के लिए वाल्मीकि ने सीता से दुबारा अग्निपरीक्षा देने की बात कही ..जीवित रहने पर सीता को जीवन भर अग्निपरीक्षा देनी पड़ी ..उसे मुक्ति नहीं थी ..एक असहाय नारी का किसी पुरुष ने स्पर्श किया ,इस माफ़ न करने योग्य अपराध से उसे मुक्ति नहीं मिली ...
सीताजी ने पृथ्वी से आश्रय माँगा ..किसी पुरुष ने उन्हें आश्रय नहीं दिया ..योग्य सम्मान नहीं दिया ..इसी लिए किसी पुरुष या पुरुष शासित समाज से सीता ने आश्रय नहीं माँगा ..अपने व्यक्तित्व की रक्षा के लिए उन्होंने चरम सत्य के बीच शपथ लेकर अपने आपको बचाया है ..सारे असत्य ,अन्याय से ,असम्मान से ,यह तो एक तरह का पलायन ही है 

पति नारी की एकमात्र गति है ..उसके पास पत्नी पर संदेह करने का और सज़ा देने का अगाध अधिकार है ..सभी पुरुषों को नारी के चरित्र पर संदेह करने का अधिकार है ,और उस संदेह के बल पर निरपराध नारी को सज़ा देने का भी अधिकार है ..रामायण में नारी को ''मनुष्य'' की मर्यादा नहीं दी गयी बल्कि यह सीख दी गयी की समाज पुरुष के एकनिष्ठ होने का दावा नहीं करता और नारी को एकनिष्ठता ,सतीत्व या पतिव्रता का प्रमाण देकर भी समाज में सम्मान नहीं मिलता ..उसे अग्नि परीक्षा देकर बार बार ये साबित करना पड़ता है की उसके सतीत्व का नाश नहीं हुआ ...

चूँकि ''सतीत्व'' शब्द सिर्फ नारी के लिए है ,पुरुष के लिए नहीं इसलिए पुरुष को अग्निपरीक्षा के झमेले में नहीं पड़ना पड़ता ,स्त्री को अकेले ही सतीत्व का पालन करना पड़ता है ,पवित्र रहना पड़ता है ..इतना ही नहीं पति के भोग के लिए स्वयं को तैयार करना पड़ता है 

सीता का सतीत्व देखकर लोग मुग्ध रह गए ..सीता के अग्नि प्रवेश से लोग तृप्त हुए ..सीता के सत्कर्म से लोग आनंदित हुए ..नारी का चरम अपमान ,निर्लज्ज दलन असख्य बार रामायण --महाभारत में उच्चारित हुआ है ..और इसी रामायण---महाभारत को देखने के लिए लोग टूट पड़ते है ...अगर इस पृथ्वी पर सभ्यता कहे जाने लायक कुछ है तो उसे लज्जित होकर सीता की तरह कहना चाहिए ---''हे माधवी देवी(पृथ्वी) मुझे विवर (आश्रय) दे मैं यदि सत्यनिष्ठ हूँ तो माधवी देवी मुझे विवर दें .......... 



1 comment:

  1. सहमत हूँ आपसे....
    राम से भला तो रावण ही था ... । उसने सीता का अपहरण करने के अलावा उसके साथ और कोई बुरा व्यवहार नही किया था और इसका परिणाम भी उसे मृत्यु पाकर भुगतना पड़ा .... लेकिन राम को क्या सज़ा मिली अपनी आराध्या पर अविश्वास करने की? भरे समाज में उसे अपमानित करने की? ...ये कैसा न्याय था भाई ...? एक राजा होने के साथ साथ वो पति भी थे ....ये कैसे भूल गये ..?..और क्या सीता उनकी पत्नी होने के साथ साथ उनकी प्रजा नही थी..?तो इस प्रजा के साथ कैसे अन्याय कर बैठे मर्यादा पुरषोत्तम....भैया ये रामायण वाले राम का कैरेक्टर तो अपनी भी समझ में नही आता.....

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